नमक हर घर की किचन में मिलता है, एक चुटकी नमक खाने को टेस्टी बना सकता है और इतना ही खाने को बेस्वाद बना सकता है। ज्यादातर घरों में खाने में समुद्री नमक ( Sea Salt ) का उपयोग किया जाता है। शुरुआत में इसे एक हल्दी नमक के तौर पर प्रस्तुत किया गया था क्योंकि इसमें आयोडीन होता है जोकि थायरॉइड हार्मोन के उत्पादन के लिए आवश्यक है। लेकिन अब बढ़ते हुए प्रदूषण से समुद्री नमक भी प्रदूषित होता जा रहा है।

आने वाले समय में समुद्री नमक के नुकसान हमारे शारीर पे दिखने लगेंगे. पर ऐसा नहीं की हम नमक खाना ही छोड़ दे. नमक सोडियम और क्लोराइड का बना होता है. हमारा शरीर इन तत्वों की पूर्ति खुद नहीं कर सकता, इसे हमे आहार द्वारा लेना पड़ता है. हमारे शरीर को जरुरी सोडियम क्लोराइड की मात्रा इसी से मिलती है. ये दोनों तत्व शरीर के कोशिका में विधमान खनिजो के साथ मिलकर हमे फिट रखती है. आइये जाने समुद्री नमक के नुकसान क्यों है.
समुद्री नमक सेहत के लिए क्यों हानिकारक होता जा रहा है?
अगर कोई व्यक्ति अपने खाने में ज्यादा नमक का सेवन करने लगे, तोह उसके सेहत के लिए ये बहुत हानिकारक होगा. हाई बिपि, शरीर का संतुलन बिगड़ना, हड्डियों का केल्सियम नष्ट होना और कई गंभीर बीमारिया जैसे परिणाम सामने आ सकते है. पर ये तो अधिक समुद्री नमक के अधिक सेवन से होने वाले नुकसान है. सभी जानते है ये नमक समुद्र से मिलता है. वैज्ञानिको के शोध से पता चला है, की समुद्र में भी ये नमक प्रदूषित हो गया है और मानव शरीर के लिए इसे नुकसानदेह बताया गया.
क्या समुद्री नमक हानिकारक है? जानिए शोध क्या कहते हैं
हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-बॉम्बे (आईआईटी मुंबई) द्वारा किए गए एक रिसर्च में पाया गया कि भारत में बेचे जाने वाले अधिकतर ब्रांडेड नमक में माइक्रोप्लास्टिक होने की संभावना है। इंस्टीट्यूट सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीईएसई) की एक दो सदस्यीय टीम ने भारत के कुछ लोकप्रिय नमक कंपनियों के सैंपल लिए और उन पर रिसर्च किया। और पाया गया कि नमक में 626 माइक्रों प्लास्टिक पार्टिकल्स थे जिनमें से 63% प्लास्टिक फ्रेगमेंट्स थे और 37% प्लास्टिक फाइबर थे। शोधकर्ताओं के अनुसार, नमक में उपस्थित प्लास्टिक बढ़ते हुए समुद्री प्रदूषण की वजह से है इसका नमक बनाने की कुछ लेना देना नहीं है।
सबसे पहले वैज्ञानिकों ने 2015 में चीन में नमक में प्लास्टिक पाया था। नमक के अलावा अन्य कॉस्मेटिक उत्पादों जैसे कि चेहरे की स्क्रब, सौंदर्य प्रसाधन, आदि में भी प्लास्टिक के कण पाए गए। ये सिर्फ चीन में ही नही बल्कि पूरे विश्व में हो रहा है क्योंकि प्लास्टिक के अधिक उपयोग के कारण सभी महासागरों में प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ चुका है।
एक रिसर्च के अनुसार हर मिनट 1 मिलीयन प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं और रीसाइक्लिंग के लिए हम कुछ भी नहीं कर रहे हैं। जितना प्लास्टिक का उत्पादन है उसकी तुलना में प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग ना के बराबर है। अगर इसी गति से प्लास्टिक का उत्पादन बढ़ता रहा तो प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण का खतरा 2050 तक दोगुना हो जाएगा।
यूएस-नेशनल ओशियन एंड एटमॉस्फेयर एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक 5mm से छोटा होता है। महासागर में उपस्तिथ प्लास्टिक का मलबा जब छोटे छोटे टुकड़ों में टूटता है तो माइक्रो प्लास्टिक और प्लास्टिक फ्रेगमेंट का निर्माण होता है जबकि प्लास्टिक माइक्रोफाइबर्स ज्यादातर कपड़ों की धुलाई के दौरान निकलते हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों के अनुसार, ये माइक्रोप्लास्टिक्स फ्रेगमेंट्स और माइक्रोफाइबर,समुद्री खाद्य (सी फूड) और अब संभवतः नमक के माध्यम से हमारी खाद्य श्रृंखला ( फूड चैन) में प्रवेश कर रहे हैं। ये माइक्रोप्लास्टिक फ़ूड चेन के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर रहे हैं जो की सेहत के लिए बहुत ही हानिकारक साबित हो सकता है।
सेंधा नमक या हिमालयन साल्ट को समुद्री साल्ट के स्वस्थ विकल्प के रूप में काम में लिया जा सकता है। हिमालयन साल्ट के अंदर समुद्री नमक की तुलना में अधिक खनिज लवण होते हैं और यह है रिफाइंड भी नहीं होता और ना ही इसमें माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए जाते हैं। सेंधा नमक काम में लेकर आप बहुत सी बीमारियों से बच सकते हैं।
अभी माइक्रो प्लास्टिक का मानव सेहत पर क्या असर है इसके लिए रिसर्च जारी है लेकिन इतना तो तय है कि माइक्रोप्लास्टिक जब शरीर में जाएगा तो बीमारियां तो पैदा करेगा ही इसलिए हमें इससे बचने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। अगर ये प्लास्टिक नमक में मौजूद है, तो समुद्री नमक के नुकसान बहुत जल्दी गंभीर बीमारी के रूप में सामने आएंगे. यह समय है प्लास्टिक को ना कहने का और प्लास्टिक मुक्त खाना खाने का।